Nirankari Shayari

हो सके तो अपने अंतर मन की फोटो निकालें।

इंसान अपनी वो छवि तो बहुत सजाता है,जिसको दुनिया देखती है।
लेकिन वो छवि नहीं सजाता जो परमात्मा देखता है।

आजकल फोटो खींचना और खिंचवाने का बहुत ट्रेंड चल रहा है।
बाहरी फोटो को तो सही करने के लिए तरह तरह के ऑप्शन मौजूद हैं, दुनिया में।
जिनको ठीक करने के लिए हम प्रयत्न करते रहते हैं।
कहीं ब्राइटनेस कम है,
कहीं कोई और तकलीफ है फोटो मेंं।

हो सके तो अपने अंतर मन की फोटो निकालें।
कहीं उसपर तो वैर नफरत ईर्ष्या के धब्बे तो नहीं हैं।
कहीं किसी की भावना को तो ठेस नहीं पहुंच रही हमारी वाणी से, हमारे व्यवहार से।

जब ये सब बातें ठीक हो जाएंगी, तब हमारी तस्वीर बिलकुल ऐसी लगेगी, जैसी परमात्मा चाहता है।
जिसपर परमात्मा का ऑटोग्राफ भी होगा और दुनिया लाइक्स भी मिलेंगे।

रहमत करो बक्शीश करो ऐसा जीवन बन पाए।

तू ही निरंकार
मैं तेरी शरण हाँ
मैनु बक्श लो।

प्रेम से रहना और प्रेम से कहना धन निरंकार जी।

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