Nirankari Stories

Husband Wife Short Story in Hindi – Nirankari Story For Husband and Wife

एक बार एक पति-पत्नि राजमाता जी के पास आये और कहने लगे-
“अब हम साथ नही रह सकते हमने डायवोर्स (तलाक) के लिये अप्लाई कर दिये हैं।”

राजामाता जी ने समझाया पर वो नही माने कहा कि अब साथ नही रह सकते हैं।

राजमाता जी ने कहा-
“ठीक है डायवोर्स तो एक महीने के बाद मिलेगा। मैं भी सहयोग कर दूंगी।
पर एक बात जो बोल रही हूं वो मान लो और एक माह के बाद मेरे पास आना मैं तुम लोगों का डायवोर्स करवा दूंगी।”

राजमाताजी ने बहन जी को समझाया-
“आज के बाद तुम इनसे पति के तरह व्यवहार मत करना।
इन्हें पति मत समझना।
इन्हें एक माह के लिये तुम्हें सौंप रही हूँ।
गुरु रुप समझ कर एक माह इनकी सेवा करना।
फिर एक माह बाद डायवोर्स तो होना ही है।”

उसके पति को भी बुलाकर यही बात समझाती हैं-
“एक माह इसे गुरु रुप समझ कर मान सम्मान दो।
इसकी हर बात मानों।
पर अब इसे पत्नी ना समझना।
एक गुरु रुप में ही इसे देखना ये मैं तुम्हें एक माह के लिये इसे सौप रही हूँ।”

दोनों घर चले जाते हैं और एक दूसरे को गुरु रुप समझ कर सेवा सत्कार करने लगते हैं।
एक साथ खाना,
भोग लगाना,
आशिर्वाद लेना,
धन निरंकार जी करना
और
नित साथ साथ सिमरन करना।

इसी प्रकार दोनों का एक माह पुरा हो गया।

राजमाता जी को याद था कि एक माह बाद उन्हें बुलना है।
सेवादारों को भेजकर उन्हें बुलाया जाता है।
दोनों आते है और धन निरंकार जी करके सामने खड़े हो जाते हैं।

राजमाता जी ने कहा-
“एक माह हो गया चलों तुम्हारा डायवोर्स कराने का दिन आ गया।”

दोनों कुछ नही बोलते हैं।
सर झुकाये खड़े रहते हैं।
दोनों के आखों में आंसू आ जाते हैं।
वो राजमाता जी के पैरों में गिर जाते हैं और कहते है-
“अब हमें अलग नही होना है।
हमें कोई शिकायत नही है।”

दोनों एक दूसरे की अच्छाईयां बताने लगते हैं कि मेरी ही गल्ती थी ये तो बड़े अच्छे हैं।

राजमाता जी ने मुस्करा कर दोनों को आशिर्वाद दिया और कहा-
“सदैव इसी प्रकार गुरुमत से भरा जीवन जीना चाहिये।
जो भी मिला है वो गुरु का दिया हुआ है।
इसे गुरु का आशिर्वाद समझ कर व्यवहार करना चाहिये।
अगर ये भाव बना रहेगा तो जीवन में कोई समस्या नही आयेगी।
प्रेम प्यार को जीवन का आधार बनाओं,सबका आदर सम्मान करों।
सबमें निरंकार दातार का दिदार करते हुये जीवन का आन्नद लों।”

इस प्रकार समझा कर उन्हें विदा कर दिया गया।

आप जी ने इन दोनों प्रंसगों के द्वारा गृहस्थ धर्म को सुन्दर ढंग से निर्वहन हेतू सुन्दर मार्ग दर्शन और सूत्र दिया।

दास ने शब्द रुप में सन्तों के भाव को साझा किया।
त्रुटियों को बख्श लिजीयेगा जी।
महापुरुषों जी,कृपा करियेगा दास भी इन बातों को जीवन में अपनाकर गुरुमत से भरा जीवन जीये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *