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मैं नहीं तो कुछ न होगा सोचना नादानी है।

मैं नहीं तो कुछ न होगा सोचना नादानी है।

सारे सिलसिले हैं मुझसे ये कहना बेमानी है।

झूठी शान दिखाता घोड़े अक्ल के तू दौड़ाता है।

कितनों को कुचलकर बन्दे आगे बढ़ता जाता है।

कहां गये वो तुझसे पहले जो घोड़े दौड़ाते थे।

ऊंचे ऊंचे महल थे जिनके सब पर हुक्म चलाते थे।

महल वो सारे बने हैं खंडहर वहां न दीपक बाती अब।

ना ही सवार होने वाले वहां न घोड़े हाथी अब।

ख़ाक में जाकर मिले वो सारे तूने भी मिल जाना है।

छोड़ इसे जाना है सबने जग ये मुसाफ़िरख़ाना है।

ऐ मिट्‌टी के पुतले इतना क्यों करता अभिमान तू।

कहे ‘हरदेव’ इस दुनिया में दो दिन का मेहमान तू।

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