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सुख, सच्चाई, आनन्द, चरित्र निर्माण, गुण, मिलवर्तन, धर्म, अर्पण,

भक्त
ईश्वर को जानकर मानने वाला भक्त सदा पवित्र जीवन जीता है। वह किसी को दुख नहीं पहुंचाता। वह स्वयं भी सुखी रहता है तथा दूसरों को भी सुख पहुंचाने में लगा रहता है।

सुख
जिसे हम सुख समझते हैं, वह किसी और सुख के लिए उकसा कर स्वयं समाप्त हो जाता है, इतना ही नहीं वह परेशानी का भी कारण बन जाता है। इसलिए सन्तों ने संसार के सुखों को स्वप्न की भांति कहा है।

सच्चाई
जिस तरह कहीं पर उजाला करना हो तो वहां पर केवल उजाला करने की जरूरत होती है, अन्धकार के विरोध या खण्डन करने की नहीं। इसी प्रकार सच्चाई के प्रचार के लिए भी सत्य को प्रकट करने की जरूरत होती है, झूठ के विरोध में उलझने की नहीं।

आनन्द
दुनिया में जितने भी झगड़े हैं, उनका मूल कारण तन, मन, थन का अहंकार है। यदि हम अहंकार से मुक्ति पा लें तो सुखमय जीवन का आनन्द ले सकते हैं।

चरित्र निर्माण
उच्च विचार, स्वच्छ आहार और निष्कपट व्यवहार चरित्र निर्माण के मूल आधार हैं। इनके लिए सत्संग अनिवार्य है।

गुण
गुरमुख हमेशा दूसरों के गुणों का ही जिक्र करता है इसलिए इसके जीवन में भी गुण आते हैं। जो हमेशा दूसरे की कमियों को देखता है, हमेशा दूसरे की गलतियों की चर्चा करने का अवसर देखता रहता है, उसके जीवन में कमी ही रहती है।

मिलवर्तन
अन्धेरे की चुनौती का सामना अन्धेरे से नहीं रोशनी फैलाकर ही किया जा सकता है। इसी प्रकार कट्टरपंथी के द्वारा भड़काई गई घृणा की आग का सामना प्रीत-प्यार और मिलवर्तन के पानी से करना पड़ेगा। धर्म धर्म आध्यात्मिकता धारण करने की पवित्र भावना है।

धर्म
श्रेष्ठ कर्म और पावन भक्ति की प्रेरणा है; प्यार, नम्रता और सहनशीलता जैसे दैवी गुणों का स्रोत है। धर्म मनुष्य को उसके वास्तविक स्वरूप की जानकारी दिलाता है, ब्रह्म और प्रकृति का ज्ञान प्रदान करता है।

मानवता
मनुष्य प्रकृति के स्वाभाविक गुण-दोषों से ऊपर उठकर ब्रह्ममयी जगत् की एकरूपता को अपनाता है, अर्थात् मानव केवल मानव बनकर एक-दूसरे से जुड़ जाता है। इस प्रकार संसार की भिन्न-भिन्न जातियां, सभ्यताएं, परम्पराएं और संस्कृतियां धर्म के एक सूत्र में बंधकर केवल मानवता को जन्म देती हैं।

अर्पण
ज्ञान लेकर यदि कोई इसे प्रयोग न करे, इसके अनुसार जीवन न बनाए, अन्य महापुरुषों के साथ नम्रता का व्यवहार न करे, बल्कि अहंकार में आकर उनका अनादर करे तो उसे ज्ञानवान होने के बावजूद भी पूरा आनन्द नहीं मिलता। इसके उलट अगर किसी ने कुछ समय पहले ही ज्ञान लिया हो और उसी क्षण से अर्पण भाव में आ गया हो, हुक्मी बन्दा बन गया हो, तो अवश्य उसका जीवन आनन्द से भर जाएगा।

यश
गुरमुख हमेशा हृदय से दूसरे के गुणों की चर्चा करते हैं। ज्यों-ज्यों दूसरे को प्रकट करते हैं दातार उनको भी प्रकट करता है, उनका भी यश होने लगता है। इन्सान इन्सान ही इन्सान के दुख-दर्द को समझ सकता है, बांट सकता है।

इसलिए
अगर हम सभी कुछ और बनने से पहले केवल इन्सान बनें तो समाज का काया कल्प हो सकता है। समाज के सभी झगड़े, सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं, क्योंकि एक अच्छा इन्सान ही अच्छा अधिकारी हो सकता है, एक अच्छा मालिक हो सकता है, अच्छा मजदूर हो सकता है।

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