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जीवन क्या है

दीपक पर मंडराते पतंगो ने मुसकरा कर कहा, त्याग ही जीवन है।
कोमल पंखो को फडफडाते पिजंरे मे बन्द पक्षी ने कहा स्वतंत्रता ही जीवन है।
निराश व्यक्ति ने रुदन भरे स्वर मे कहा – जीवन ही रुदान है, एक अभिसाप है।
अपने आप मे खोए, एक दार्शनिक ने कहा – मृत्यु ही जीवन है।
दुखी कवि ने कहा – वेदना ,असंतोष विरह-वियोग ही जीवन है।
प्रेम में उन्मत एक प्रेमी ने कहा – प्रेम ही जीवन है।
कलियो ने कहा – निरंतर खिलते रहना ही जीवन है।
खूशबू फैलाते हुए फूलो के झुड ने कहा – प्रफुल्लता ही जीवन है।
एक सैनिक ने कहा – निरंतर आगे बढते रहना ही जीवन है।
सागर मिलने को बेचैन नदी ने लहराकर कहा – दूसरो को शीतलता प्रदान करना ही जीवन है।
एक कहानी कार ने कहा – जीवन कभी समाप्त न होने वाली कहानी है।
एक वैज्ञानिक ने कहा – जीवन एक अनोखा आविष्कार है जो हरपल नया अनुभव देता है।

इस प्रकार से सभी ने जीवन के अपने – अपने अनुभव के आधार पर धाराणाएं प्रस्तुत की जिनके निष्कर्ष से जिज्ञासु की जिज्ञासा शांत नही हुई तो उसने कहा – शायद यूं ही भटकते रहना ही जीवन है। अलौकिकता से निरंकार दातार की दिव्य आवाज आई, हे मूर्खों! अपने – अपने कर्तव्यों का पालन करना ही जीवन है।

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