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प्यार समर्पण त्याग जहां है घर वही हैं कहलाते।

रिश्तों में जो रहे मधुरता तो मकान घर बन जाते।

प्यार समर्पण त्याग जहां है घर वही हैं कहलाते।

रोड़ा पत्थर ईंट से बनता उसे नहीं घर कहते हैं।

घर है तभी जब प्यार से मिलकर सारे प्राणी रहते हैं।

इक दूजे की भावना की क़दर सदा है जिस घर में।

ये सच है कि स्वर्ग का नक्शा बन जाता है उस घर में।

घर ‘हरदेव’ बने वो मंदिर जहां हरि का नाम है।

वहीं पे सुख है आनन्द है और चैन है आराम है।

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